फांसी की सजा के खिलाफ अवाज उठाने वालों को करारा जवाब
दूसरोंको मारने वाले को मृत्युदंड क्यों नही- आचार्य महाश्रमण
चारभुजा २० जून २०११
अहिंसा यात्रा के साथ मेवाड़ की घाटियों में अहिंसा की अलख जगा रहेआचार्य महाश्रमण ने फांसी की सजा के खिलाफ अवाज उठाने वालों को करारा जवाब दिया है। उन्होंने चारभुजा चौराहे पर आयोजित विराट स्वागत समारोह में कहा कि जो
अपराधी दूसरों को मारता है उसे मृत्युदंड क्यों नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अनेक लोग कहते हैं कि मृत्युदंड नहीं होना चाहिए, पर मैं कहना चाहुंगा कि जो दूसरों को मारनेजैसा घिनौना अपराध करता है उसे मृत्यु दंड क्यो न हो। अपराधी दूसरों को मारता है उसे मृत्युदंड क्यों नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अनेक लोग कहते हैं कि मृत्युदंड नहीं होना चाहिए, पर मैं कहना चाहुंगा कि जो दूसरों को मारनेजैसा घिनौना अपराध करता है उसे मृत्यु दंड क्यो न हो। अपराधी जिस तरह का अपराध करता है। उसे उस स्तर का दंड नहीं मिलेगा तो अपराध पर नियंत्रण नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में राजतंत्र नहीं है परन्तु दंड संहिता आज भी है। इसका काम न्यायालय में होता है। दंड संहित केकारण ही अपराध करने वालों पर अकुंच्च रहता है। हम संत है। संतो का काम अपराधि का हृदय परिवर्तन करना होता है। उस काम को अजाम देने का प्रयास करते है, परन्तु सब जगह प्रेम काम नहीं करता है। दंड संहिता का भी अपना मूल्य है।
शांतिदूत आचार्य महाश्रमण ने भाजपा महासचिव किरन माहेच्च्वरी द्वारा सभा में चर्चित संत गोपाल महाराज पर हुए हमले के मुद्दे पर अपना मंतव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि काम और क्रोध दो वृतियां है। जिनके उभर जाने से व्यक्ति बड े से बड ा अपराध कर देता है। वह यह नहीं देखता कि सामने कौन है। संतो पर भी वह हमला कर देता है। परन्तु राजा का, शासक का कर्तव्य होता है कि संतो की, सज्जनों की रक्षा करे, दुर्जनों पर
कार्यवाही करे और आश्रित व्यक्तियों का भरण पोद्गाण करें। जो शासक इस दायित्व को, फर्ज को नहीं निभाता है वह सफलता से शासन नहीं कर सकता है।आचार्य महाश्रमण ने राजनीति से स्वार्थ साधने वालों को नसीहत देते हुए कहा कि
राजनीति में मूल्यवत्ता बनी रहनी चाहिए। यह देश की, जनता की सेवा का साधन है। जो
इसके द्वारा स्वार्थपुर्ति करते हैं वह मूल्यों को इग्नोर करते हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति
पर धर्मनीति का अकुंच्च होना चाहिए। प्राचीन समय में राजा-महाराजा संतो के पास
मार्गदर्च्च्शन प्राप्त करने आते थे। आज भी राजनीति के लोग हमारे पास आते हैं। संतो से
आत्मज्ञान प्राप्त करना उनका कर्तव्य है।
भाजपा की राश्ट्रीय महासचिव किरण माहेच्च्वरी ने मुखय अतिथि के तौर पर आचार्य
महाश्रमण का स्वागत करते हुए कहा कि आचार्यश्री मेवाड़ की इन जटिल घाटियों में
पदविहार करते हुए प्रत्येक समाज में धर्म के प्रति जागृति ला रहे है। कुछ संत तो अपने
ठिकानों में बैठे रहते है, हमें वहां जाकर उनके दर्च्च्शन लाभ लेने होते है
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