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खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे मित्ती मे सव्व-भूएसु, वेरं मज्झ न केणइ।।

चातुर्मास फरमाए, साधु-साध्वियों को दिए निर्देश



आचार्यश्री महाश्रमण मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति, गंगाशहर
तेरापंथ भवन, महावीर चौक, गंगाशहर (बीकानेर)
दिनांक : ६ फरवरी 2014

प्रेस विज्ञप्ति

चातुर्मास फरमाए, साधु-साध्वियों को दिए निर्देश
विवेकपूर्ण सद्पुरुषार्थ करने वाला भाग्यशाली : महाश्रमण
गंगाशहर। 150वें मर्यादा महोत्सव के तृतीय दिवस गुरुवार को नैतिकता के शक्तिपीठ आचार्य तुलसी समाधि स्थल के प्रेक्षाध्यान प्रांगण में 12:15 बजे कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। मुनिश्री दिनेश कुमार ने जयघोष के साथ मंगल गीत प्रस्तुत कर कार्यक्रम की शुरुआत की। महोत्सव में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने व्याख्यान में कहा कि हमारी दुनिया में वह आदमी भाग्यशाली होता है जो विवेकपूर्ण सद्पुरुषार्थ करता है। सम्यक् पुरुषार्थ तपस्या में, संयम में होता है। आचार्य भिक्षु पराक्रमी पुरुष थे उनमें श्रद्धा का भाव विशिष्ट था। आचार्यश्री ने कहा कि जो दया देह को पोषण देती है, जिस दान से देह को सहायता मिले वह लौकिक और जो दान, दया आत्मा का पोषण करती है वह लोकोत्तर कहलाता है। एक साधु किसी गृहस्थ को ज्ञान का दान, अध्यात्म की शिक्षा का दान देता है तो वह लौकिक और यदि गृहस्थी किसी साधु को शुद्ध आहार या उसकी सेवा करता है तो वह लोकोत्तर होगा। भूखे को भोजन करवाने से उसका पेट भरता है उसकी आत्मा को तृप्ति मिले यह जरूरी नहीं। आचार्य भिक्षु ने दान, दया और अनुकम्पा आदि विषयों पर अपना मन्तव्य प्रस्तुत किया था। आचार्य भिक्षु ने क्रांति की और तेरापंथ संघ का सूत्रपात किया। भिक्षु ने मर्यादाओं का निर्माण किया तथा जयाचार्य ने उन मर्यादाओं को महोत्सव का रूप दिया। 
मंत्री मुनि सुमेरमल स्वामी को गुरुवार को दीक्षा लिए 72 वर्ष पूर्ण हो गए। अपने व्याख्यान में मंत्री मुनि सुमेरमल स्वामी ने कहा कि जो मर्यादा के साथ रहता है वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। जिस संस्थान, समाज, संगठन में संविधान हो और संविधान के प्रति आदर हो तथा संविधान के प्रति निष्ठा और समर्पण हो तो वह संगठन, संस्था चिरजीवी रहती है। मर्यादा के प्रति निष्ठा, श्रद्धा के प्रति निष्ठा आवश्यक है। जिस संघ में, धर्म संगठन में श्रम की प्रतिष्ठा और संघ नायक के प्रति निष्ठा भरी होती है उस संघ का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। तेरापंथ धर्म संघ की यह विशेषता है। धर्म संघ का सौभाग्य है कि भिक्षु से लेकर आज महाश्रमण जैसे आचार्य हमें प्राप्त हुए। हम भाग्यशाली हैं कि कलयुग में भी हमें ऐसा धर्मसंघ मिला है।
साध्वीप्रमुख कनकप्रभा ने अपने उद्बोधन में कहा कि जहां एक आचार्य का नेतृत्व है, एक आचार परम्परा है ऐसा तेरापंथ धर्म विश्व में विजय को धारण करता है। लगभग ढाईसौ वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्म संघ का सूत्रपात हुआ। जिसमें अनुशासन और समर्पण की धारा है। ऐसा धर्मसंघ जो मर्यादाओं को आधार मानकर चलता है। एक गुरु की आज्ञा की राह पर चलने वाले साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाएं जब समस्या से घिर जाती हैं तो गुरु ही उनका मार्गदर्शन करता है। दीपक से लेकर आकाश तक जितनी वस्तुएं हैं सब मर्यादित हैं। तेरापंथ धर्म संघ मर्यादाओं के आधार पर चल रहा है। सत्य के प्रति निष्ठाशील रहें, अहंकार का कभी बोध न आए। अहंकारी कभी सफल साधक नहीं बन सकते।

मर्यादा पत्र का किया वाचन
आचार्यश्री महाश्रमण ने मर्यादा पत्र का वाचन किया। यह पत्र आचार्य भिक्षु ने 1859 में मुनिश्री भारमलजी को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए एक मर्यादा पत्र लिखा था। महाश्रमणजी ने इस ऐतिहासिक पत्र की हिन्दी प्रतिलिपि का वाचन करते हुए कहा पत्र के अनुसार चातुर्मास कहां करने हैं, शिष्य का गुरु के प्रति कर्तव्य का उल्लेख किया गया है। पत्र में लिखा गया है कि अपने आचार्य की आज्ञा के बिना कुछ भी नहीं करना है। आज्ञा और सेवा का महत्व दिया गया है। स्वयं का शिष्य-शिष्याएं न बनाएं। हम अपनी मर्यादाओं के प्रति सचेत रहें। संघ की मर्यादाओं के प्रति जागरुक रहें तभी विकास की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

साधु-साध्वियों को दिए निर्देश
मर्यादा महोत्सव के तीसरे दिन महाश्रमणजी ने उपस्थित समस्त साधु-साध्वियों को कहा कि साधु के पास ज्यादा उपकरण नहीं रहने चाहिए। आवश्यकता से अधिक उपकरण हमारे लिए बोझ बन जाते हैं। खासतौर पर विहार के समय तो बहुत सीमित उपकरण साथ में रखने चाहिए। ध्यान रहे कि एक साधु के पास एक बैग से ज्यादा उपकरण न रहे। काशीद का चातुर्मास के दौरान त्याग रखें। विहार में आप काशीद को साथ ले सकते हैं। आलू जमीकंद में आता है इसलिए इसका प्रयोग न करें। साधु लोग जहां लम्बा प्रवास करें अर्थात् दो-तीन दिन रहना पड़े जहां वहां सांसारिक स्त्रियों के चित्र न लगे हो और यदि कम समय रहना हो तब तो कोई खास बात नहीं। साध्वियों के लिए भी यही व्यवस्था है। साध्वियों को जहां प्रवास करना हो वहां सांसारिक पुरुषों का चित्र न हो। महाश्रमणजी ने कहा कि सेवा का क्रम जो बांधा गया है वह अब हटा दिया गया है। अब सेवा जो भी चाहे कर सकता है। तीन चाकरी का कर्जा हमारे ऊपर रहता है उसको अवश्य पूरा करें। विहार के दौरान ध्यान रखें कि मार्बल, नमक अथवा किसी भी फैक्ट्री में जाकर मंगल पाठ न सुनाएं। सप्ताह में पांच शुद्ध सामायिक अवश्य करें। साधु-साध्वियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कवरयुक्त कोई खाने की वस्तु न लें और श्रावक-श्राविका भी ध्यान रखें की साधु-साध्वियों को कवरयुक्त या कागज से लिपटा कोई भी खाने का पदार्थ गोचरी में न दें। गोचरी के प्रति जागरुकता रखें। हमें विहार के दौरान गांवों में गोचरी लेनी चाहिए चाहे जैन हो या जैनेत्तर किसी से भी ले सकते हैं लेकिन गोचरी विधिवत् हो। चिकित्सा संबंधी कोई समस्या हो तो पहले तेरापंथी सभा के सदस्यों-अधिकारियों को अवगत करवाएं वो स्वयं व्यवस्था देखेंगे यदि वे नहीं करते हैं तो फिर मुझसे सम्पर्क साधा जाए। बेहोशी की हालत में कभी संथारा नहीं पचकाना चाहिए। अवस्था आ गई हो तो स्वयं संथारे का आग्रह करें। 
समणश्रेणी को निर्देश देते हुए कहा कि भिक्षा में वाहन के प्रयोग की सीमा हो। दो किमी तक यदि भिक्षा लेनी हो तो वाहन का प्रयोग न करें इसके बाद चाहें तो वे वाहनप्रयोग कर सकती हैं। भिक्षा के अलावा भी यदि कहीं बाहर जाना हो तो दो किलोमीटर तक की यात्रा में वाहन का प्रयोग हर्गिज न करें। समणश्रेणी यदि टीवी पर प्रवचन देखना चाहें तो वे एक दायरे में रहकर अवश्य टीवी पर प्रवचन देख सकते हैं। श्रावक-श्राविकाओं को जैन सिद्धान्त गीतिका को कंठस्थ करने का आदेश दिया।
तेरापंथ महासभा नवसदस्यों को सुनाया मंगल पाठ
कार्यक्रम के दौरान महाश्रमणजी ने कहा कि हीरालाल मालू तेरापंथ महासभा के अध्यक्ष रह चुके हैं और दो वर्षों तक इन्होंने बहुत अच्छी सेवा की है। नवनिर्वाचित अध्यक्ष कमल दूगड़ व चीफ ट्रस्टी विमल नाहटा तथा साथ में तेरापंथ महासभा के अन्य ट्रस्टियों को मंगलपाठ सुनाया।

हाजरी का दिखा अनूठा नजारा
मर्यादा महोत्सव के तीसरे दिन आचार्यश्री महाश्रमणजी के समक्ष सभी साधु-साध्वियों ने कतारबद्ध खड़े होकर हाजरी दी। दीक्षाक्रम से खड़े साधु-साध्वियों को आचार्यश्री ने संकल्प दिलाए। सभी पंक्तिबद्ध दीक्षाक्रम में खड़े साधु-साध्वियों ने धर्मसंघ के एक गुरु की आज्ञा में रहने का संकल्प लिया। संतों की अपने गुरु के प्रति आज्ञा व समर्पण देख हर कोई अभिभूत हो रहा था।

कार्यक्रम के अंत में उपस्थित तेरापंथ धर्मसंघ के अनुयायियों को संकल्प दिलाया गया कि उन्हें खान-पान आदि में मर्यादा रखनी होगी। सामयिक का संकल्प दिलाते हुए गुरुदेव ने कहा कि सबको संयम का पालन करना चाहिए।

संघ को किया नमस्कार
आचार्य महाश्रमण ने उपस्थित सभी साधु-साध्वियों को खड़े होकर अभिवादन किया। उन्होंने कहा कि वृद्ध साधु-साध्वियां एवं उपस्थित सभी साधु-साध्वियों को मेरा नमस्कार। मैं आपसे मंगलभावना का आशीर्वाद चाहता हंू। महाश्रमणजी ने कार्यक्रम के दौरान सभी साधु-साध्वियों को खमतखामणा (क्षमा-याचना) भी की। उपस्थित सभी जनों ने महाश्रमणजी की इस विनम्रता पर ú अर्हम् का उद्घोष किया। उन्होंने कहा कि राजस्थान में इस मर्यादा महोत्सव के बाद फिर कब आने का अवसर प्राप्त हो यह अभी बताना संभव नहीं लेकिन कई वर्षों तक तो राजस्थान नहीं आना होगा। आचार्यश्री ने 2016 का मर्यादा महोत्सव बिहार के किशनगंज में रखने की तथा 2017 का मर्यादा महोत्सव सिलिगुडी में करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि वे दिल्ली के बाद कानपुर की ओर फिर ग्वालियर विहार का भाव है।
सूचना एवं मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र डाकलिया ने कहा कि आचार्यश्री महाश्रमण शुक्रवार को सुबह 8 बजे आशीर्वाद भवन से प्रस्थान कर तेरापंथ भवन पहुंचेंगे तथा नियमित व्याख्यान लगभग 9.30 बजे शुरू हो जाएगा। डाकलिया ने बताया कि महाश्रमणजी ने स्वयं द्वारा रचित 'भैक्षव शासन नंदनवन की सुषमा शिखर चढ़ाएं हमÓ गीत प्रस्तुत किया। साध्वीवृंद ने 'मर्यादाएं संघ को बलवान बनाती हैंÓ गीतिका प्रस्तुत की। मुनिश्री जतनमल स्वामी को शासनश्री की उपाधि दी। स्व. धनराज जी बोथरा को शासनसेवी स्व. धनराज बोथरा की उपाधि प्रदान की। एक अनुमान के आधार पर आज लगभग 30 हजार लोग इस 150वें वृहद मर्यादा महोत्सव के साक्षी बने। कार्यक्रम की सम्पन्नता के लगभग 45 से 50 मिनट तक तुलसी समाधिस्थल के निकासी गेट से एक जैसे चलते रहे।
चातुर्मास की हुई घोषणा
गुरुवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित साधु-साध्वियों को चातुर्मास के आदेश दिए  जिनमें साध्वीश्री जयश्री को बीकानेर, साध्वीश्री तेजकुमारी को उदासर, शासनगौरव साध्वी राजीमतीजी को नोखा एवं मुनिश्री राजकरण, मुनिश्री नगराज को फिलहाल गंगाशहर में ही रहने के आदेश दिए हैं।

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आचार्य श्री महाश्रमण के आगामी कार्यक्रम :


2014 - मर्यादा महोत्सव - गंगाशहर; चातुर्मास - दिल्ली।
2015 - मर्यादा महोत्सव - कानपुर; चातुर्मास - बिराटनगर (नेपाल)।
2016 - चातुर्मास - गुवाहाटी।
2017 - चातुर्मास - कोलकाता।

Future Plan of ACHARYA SHRI's


2014 Chaturmas declared for New Delhi, india
2015 Chaturmas declared for BIRATNAGAR Nepal .
2016 Chaturmas declared for Guwahati Assam, India.
2017 Chaturmas declared for Kolkata India.
Maryada Mahotsava for the year 2012 is declared for Amet, Rajasthan, India.