केलवा जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो केलवा 19 Sep-2011
आचार्य महाश्रमण ने अन्ना हजारे के अनशन और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शांति, भाईचारे के लिए किए गए उपवास का उल्लेख करते हुए कहा कि शुद्ध लक्ष्य के साथ किया गया उपवास सार्थक है। जैन समाज में लंबे-लंबे उपवास किए जाते हैं। 30 दिनों के उपवास काफी संख्या में प्रत्येक वर्ष होते हैं। जैनों की तपस्या आत्म शुद्धि के लिए की जाती है। अन्ना जी ने देश के लिए अनशन किया। मौत को भी गले लगाने का संकल्प दिखाया।
आचार्य श्री रविवार को यहां तेरापंथ समवसरण में दैनिक प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने भ्रष्टाचार के संदर्भ में कहा कि सरकार के लोग हो, प्रशासन का क्षेत्र हो या आम जनता। सब जगह भ्रष्टाचार व्याप्त है। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए सघन प्रयास आवश्यक है। बचपन से ही नैतिकता, ईमानदारी के संस्कार विद्यालयों में दिए जाने चाहिए। युवाओं को जागरूकता रखनी होगी। व्यापार में धोखाधड़ी, गलत तौल-माप और बेईमानी पर स्वयं द्वारा ही लगाम रखनी होगी। भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नशामुक्ति पर भी ध्यान देना जरूरी है। मैंने केलवा को नशामुक्त ग्राम बनाने का लक्ष्य दिया है। इस संदर्भ में कार्य हो रहा है। लोगों को प्रेरित करने का कार्य हो, शक्ति नियोजित हो तो सफलता मिल सकती है।
हिंसा का कारण अज्ञानता भी :
उन्होंने श्रावक-श्राविकाओं से हिंसा से दूर रहने का आह्वान करते हुए कहा कि यह व्यक्ति में तीन तरह से आती है। पहला आवेश में आना है। घरेलू हिंसा के प्रसंग अक्सर देखने और सुनने में आते हैं। हिंसा का दूसरा कारण अज्ञानता भी माना गया है। जानकारी होने पर अनेक तरह की हिंसा से बचा जा सकता है। अभाव के कारण व्यक्ति आतंककारी भी बन सकता है। काम वासना और सत्ता को पाने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाने की बात सामने आती है। काम और क्रोध की वृत्तियों से बचने पर हिंसा से बचा जा सकता है। दो मार्ग हैं हमारे सामने- एक अहिंसा का सीधा साधा और दूसरा हिंसा का मार्ग।
सहन करना सीखें :
संपत्ति बंटवारे की छोटी-छोटी बातों में उलझना नहीं चाहिए। कोर्ट में जाने की अपेक्षा नहीं रहना चाहिए। त्याग और चेतना का विकास होना चाहिए। सहनशीलता की आवश्यकता है। पिता ने पुत्र को कुछ कह दिया, गुरु ने शिष्य को कुछ कह दिया, तो उसे सहन करना चाहिए। पिता के प्रति पुत्र के भाव आदर से होने चाहिए। कभी डांट भी दिया, तो उसे सहन करना चाहिए। अहिंसा के पालन के लिए जागरूकता रखें। धार्मिक स्थलों से जुडे स्थानों पर जमीकंद का उपयोग नहीं किया जाए। मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि सभी व्यक्ति यात्रा में है। यह लंबी यात्रा है। एक जन्म की नहीं जन्म जन्मों की यात्रा है। निर्विकल्प अवस्था जहां आ जाती है वहां मंजिल मिल जाती है। मन वचन की प्रवृत्तियों को छोड़़ते हैं तो चंचलता को भी छोड दें। व्यक्ति को अनवरत रूप से धर्म की आराधना में लीन रहना चाहिए।
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